NATO vs Russia: आखिर NATO से क्‍यों डरत हैं पुतिन? जानें-इसके बड़े कारण, यूक्रेन, फ‍िनलैंड और स्‍वीडन क्‍यों हैं निशाने पर- एक्‍सपर्ट व्‍यू

रूस यूक्रेन जंग के कई महीने हो गए हैं। इस युद्ध के पीछे एक बड़ी वजह नाटो (NATO) माना जा रहा है। यह माना जा रहा है कि यूक्रेन का नाटो NATO संगठन में दिलचस्‍पी और अमेरिका से निकटता के चलते रूस ने कीव के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया था। यूक्रेन की अमेरिका के साथ सामरिक संबंध और नाटो की सदस्‍यता को लेकर रूस कई बार उसे धमकी दे चुका था। रूसी विरोध के बावजूद यूक्रेन नाटो की सदस्‍यता को लेकर अड़ा रहा। इसका परिणाम एक महायुद्ध में तब्‍दील हो गया। इतना ही नहीं फ‍िनलैंड और स्‍वीडन को भी रूस ने धमकी दी है कि अगर वह नाटो की सदस्‍यता लेते हैं तो परिणाम भुगतने को तैयार रहे। आखिर नाटो से रूस को इतना गुरेज क्‍यों रहा है। इसके पीछे बड़ी वजह क्‍या है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है जिसमें फिनलैंड शामिल होना चाहता है ? रूस यूरोप में नाटो के विस्तार का विरोध क्यों कर रहा है? कैसे नाटो के चलते ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था?

1- नार्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन यानी NATO 1949 में बना एक सैन्य गठबंधन है। इसमें शुरुआत में 12 देश थे। इनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे। इस संगठन का मूल सिद्धांत यह है कि यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है तो बाकी देश उसकी मदद के लिए आगे आएंगे। इस संगठन का मूल उद्देश्‍य दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस के यूरोप में विस्तार को रोकना था।

2- NATO संगठन का लगातार विस्‍तार हो रहा है। मौजूदा समय में इस संगठन में 30 सदस्य देश हैं। इनमें 28 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं। इस संगठन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी NATO देशों और उसकी आबादी की रक्षा करना है। NATO के आर्टिकल 5 के मुताबिक, इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को NATO के सभी देशों पर हमला माना जाएगा।

3- हालांकि, वर्ष 1955 में तत्‍कालीन सोवियत संघ ने नाटो के जवाब में पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों के साथ मिलकर अपना अलग सैन्य गठबंधन खड़ा किया था। इसे वारसा पैक्ट नाम दिया गया था, लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वारसा पैक्ट का हिस्सा रहे कई देशों ने दल बदल लिया और वह नाटो में शामिल हो गए। दरसअल, नाटो संगठन में भले ही अमेरिका एक देश के रूप में शामिल हो, लेकिन संगठन में उसी का वर्चस्‍व है।

4- नाटो संगठन में सर्वाधिक सैनिक अमेरिका के ही हैं। संगठन के सदस्‍य देशों की सुरक्षा के नाम पर नाटो सैनिकों ने रूस की पूरी घेराबंदी की है। रूस की नाक के नीचे नाटो सैनिक मौजूद हैं। अमेरिका के साढ़े तेरह लाख सैनिक मौजूद हैं। रूस की बड़ी चिंता यही है। सेना के लिहाज से इस संगठन में तुर्की का स्‍थान है। तुर्की के करीब साढ़े तीन लाख सैनिक संगठन में शामिल हैं। तीसरे स्‍थान पर फ्रांस है। फ्रांस के दो लाख से ज्‍यादा सैनिक नाटो संगठन का हिस्‍सा हैं। चौथे नंबर पर जर्मन है। पांचवे स्‍थान पर इटली का स्‍थान आता है। छठवें स्‍थान पर ब्रिटेन है। सेना की मौजूदगी के लिहाज से देखा जाए तो इस संगठन में अमेरिका का वर्चस्‍व है।

रूस यूक्रेन जंग के बाद NATO की पूर्वी सीमाओं को मजबूत करने के लिए अमेरिका ने पोलैंड और रोमानिया में तीन हजार अतिरिक्त जवान तैनात किए हैं। इसके अलावा 8,500 सैनिकों को अलर्ट पर रखा है। इसके अलावा करीब बीस करोड़ डालर कीमत के हथियार भी नाटो ने यूक्रेन को भेजे हैं, जिनमें जेवलिन एंटी टैंक मिसाइलें भी शामिल हैं और स्टिंगर एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें भी हैं। ब्रिटेन ने यूक्रेन को कम दूरी वाली दो हजार एंटी टैंक मिसाइलें दी हैं। पोलैंड में 350 सैनिक भेजे हैं और इस्टोनिया में अतिरिक्त 900 सैनिक भेजकर अपनी ताकत दोगुना की है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *