जहां-जहां शरीर के अंश गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो हुई
भास्कर न्यूज | बालोद ग्राम नेवारीकला में श्रीमद् भागवत महापुराण में दूसरे दिन शुक्रवार को पंडित कालेश्वर प्रसाद तिवारी ने ध्रुव और सती चरित्र का वर्णन किया। तिवारी ने कहा कि माता सती के पिता दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया और उसमें अपने सभी संबंधियों को बुलाया था लेकिन बेटी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया,जब सती को यह पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। उन्होंने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी लेकिन शिव ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि बिना बुलाए जाने से इंसान के सम्मान में कमी आती है। माता सती ने शिव की बातों को नहीं मानी और राजा दक्ष के यज्ञ में पहुंच गई, वहां सती ने अपने पिता सहित सभी को बुरा भला कहा और स्वयं को यज्ञ के अग्नि में स्वाह कर दिया। जब भगवान शिव को पता चला तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा दक्ष की नगरी को तहस-नहस कर दिया। सती का शव लेकर घूमते रहे। जहां-जहां शरीर का अंश गिरा वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गई। मनुष्यों को ध्रुव की तरह स्थिर रहकर ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। इस संसार में सभी मनुष्यों को चाहिए वह सांसारिक कार्यों को करते हुए ईश्वर से सच्ची भक्ति करे। क्योंकि जिस ईश्वर ने हमें जन्म देकर इस भौतिक संसार में जोड़ा है। हम इस संसार में रहकर दुखों को भोगना पड़ता है।