मोहन भागवत ने कहा:सभी के साथ समानता व सेवा ही संघ की पद्धति
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को कार्यकर्ताओं व अधिकारियों के साथ चर्चा की। इस दौरान उन्होंने सेवा कार्यों को लेकर मार्गदर्शन भी दिया। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों के साथ समान वृत्ति सभी जातियों के साथ समानता की बुद्धि और सेवा का व्यवहार ही संघ की पद्धति है। सेवा को मानवता का धर्म भी कहा जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों में सेवा के अनुकरणीय उदाहरण हैं। सेवा धर्म है, मेरे जीवन से सभी का जीवन सुखी हो, यही कल्पना होनी चाहिए। यही हमारी प्राचीन परंपरा है। अपने साथ सबको सुखी, सुरक्षित बनाना ही मानव धर्म है। केवल अपने हित की चिंता करना धर्म नहीं है। छत्तीसगढ़ में सेवा भारती के 99 प्रकल्प: छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विचार परिवार द्वारा समाज के सहयोग से अनेक सेवा प्रकल्प संचालित किए जा रहे हैं। सिर्फ सेवा भारती द्वारा 99 सेवा प्रकल्प संचालित हैं। इनमें रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, अंबिकापुर, दुर्ग, राजनांदगांव, जगदलपुर में संचालित मातृछाया प्रमुख हैं। यहां ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता नहीं हैं या जिन्हें छोड़ दिया गया है। उनके भोजन, कपड़े, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा व मनोरंजन की व्यवस्था समाज के सहयोग से की जाती है। स्वयं सेवक लोगों के दुख दूर करने की कोशिश करें सरसंघ चालक मोहन भागवत ने कहा कि हमारा सबके साथ आत्मीयता का रिश्ता है। स्वयंसेवक अपने आस पास के लोगों के दुख, दारिद्र्य, अभाव को दूर करने के लिए प्रयास करें। उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना के मूल में भी सेवा का भाव प्रमुख है। आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के मन में देश की दुर्दशा को देख पीड़ा थी, यही कारण रहा कि संघ अपने जन्म के साथ ही सेवा रूप लेकर आया है। 1925 में संघ की स्थापना हुई थी। मार्च 1926 में राम नवमी के अवसर पर निकलने वाली यात्रा में स्वयंसेवकों ने सेवा की थी।