24 लाख की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती:इंजीनियर हर माह ग्लेडियस, रजनीगंधा व सेवंती की 80 हजार स्टिक की सप्लाई कर रहे, मांग 3 गुना
बिलासपुर से 12 किमी दूर तखतपुर का ग्राम बिनौरी इन दिनों कई तरह के फूलों से महक रहा है। दरअसल, यहां एक युवा इंजीनियर शुभम दीक्षित ने रजनीगंधा, जरबेरा, सेवंती और ग्लेडियस की खेती शुरू की है। खेती के लिए उन्होंने बैंक ऑफ अमेरिका का सालाना 24 लाख रुपए का पैकेज छोड़ दिया। खेती शुरू करने से पहले मार्केट का अध्ययन किया। इसमें पाया कि फूलों का मार्केट कोलकाता, बेंगलुरू पर निर्भर है। अब वे आधुनिक तकनीक और देसी खाद से जरबेरा, ग्लेडियस, रजनीगंधा और सेवंती के 80 हजार तक स्टिक बेचकर हर महीने 3.2 लाख रुपए कमा रहे हैं। 30% मेंटेनेंस खर्च निकालने के बाद उनकी सालाना आय करीब 26.88 लाख रुपए है। सप्लाई की तुलना में इन फूलों की मांग तीन गुना है। बिलासपुर में फूलों का बड़ा मार्केट है। यहां कुछ ही किसान सिर्फ गेंदा उगाते हैं। बाकी फूल पुणे, बेंगलुरु और कोलकाता से मंगाए जाते हैं। दूर से आवाजाही के कारण फूलों की क्वालिटी गिरती है और खर्च भी बढ़ जाता है। यही वजह है कि शुभम के फूलों की मांग स्थानीय मार्केट में बहुत ज्यादा है। शुभम के मुताबिक बाजार में फूलों की मांग इतनी अधिक है कि वे सप्लाई नहीं कर पा रहे हैं। तिलक नगर निवासी शुभम ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने मुंबई में इन्वेस्टमेंट एजेंसी जेपी मॉर्गन, बैंक ऑफ अमेरिका के आईटी सेक्टर में जॉब किया। 14 साल मुंबई जॉब करते हुए उन्होंने वहीं रहने का मन बना लिया था। लेकिन मार्च 2020 में कोविड संक्रमण की वजह से उन्हें घर लौटना पड़ा। वर्क फ्रॉम होम के साथ वे अपने पिता राजीव दीक्षित की खेती में हाथ बंटाने लगे। तखतपुर रोड पर ग्राम बिनौरी स्थित खेत जाकर मजदूरों का हिसाब-किताब देखने लगे। उन्होंने पाया कि खेती के नाम पर मिट्टी की उर्वरा शक्ति से किसान खिलवाड़ कर रहे हैं। बेहिसाब यूरिया व अन्य खाद डालने से अनाज की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। तब जॉब के साथ ही उन्होंने खुद खेती करने का निर्णय लिया। उन्होंने केले की फसल से शुरुआत की। पहली फसल में लागत का 50 प्रतिशत ही निकल सका। मार्केट में बाहर के फूलों पर निर्भरता को समझा और फूलों की खेती शुरू की। सफलता मिलने पर नौकरी भी छोड़ दी।
रजनीगंधा से तीन तो जरबेरा से एक साल लगेंगे फूल
शुभम ने ढाई एकड़ में 70 हजार रजनीगंधा के ट्यूब लगाए हैं। ये पौधे बन चुके हैं। प्रत्येक ट्यूब को 80 पैसे के हिसाब से उन्होंने खरीदा था। इस पर मजदूर और खाद और मेंटेनेंस पर एक लाख रुपए खर्च किए। इससे वे 3 साल तक फूल लेंगे। हर महीने 400 स्टिक तक निकल रहे हैं। बाजार में प्रति स्टिक 5 से 6 रुपए में बिक रहा है। वहीं जरबेरा में उन्होंने 60 लाख रुपए खर्च किए हैं। इसके लिए पॉलीहाउस भी बनाया है। यहां पौधों की ग्रोथ के लिए 13 से 22 डिग्री तक तापमान व 75 तक आर्द्रता मेंटेन कर उत्पादन ले रहे हैं। रोजाना 500 स्टिक निकल रहे हैं, प्रति स्टिक के बाजार से उन्हें 5 से 10 रुपए तक मिल रहे हैं। इससे वे हर साल 10-12 लाख रुपए तक कमाई हो रही है। कुल खर्च पर 50% सरकार से सब्सिडी शुभम के मुताबिक टिश्यू की रोपाई से लेकर देखभाल और एक एकड़ में पॉली हाउस बनाने में कुल 60 लाख रुपए लागत आई। इसमें 50% सब्सिडी मिली। उन्होंने कुछ बैंक लोन भी लिया। अब वे सालाना 34 लाख की आय हो रही है। ईएमआई 4.5 लाख और लागत का 30 प्रतिशत खर्च करने के बाद करीब 26 लाख रुपए से ज्यादा कमाई हो रही है। कानन पेंडारी के पास 14 एकड़ में कर रहे खेती
तखतपुर रोड पर कानन पेंडारी के पास पिता 14 एकड़ कृषि भूमि में से शुभम 5 एकड़ में फूलों की खेती कर रहे हैं। एक एकड़ में उन्होंने पॉली हाउस बनाकर 26 हजार जरबेरा के पौधे लगाए हैं। इससे महीने में 15 से 18 हजार फूलों की स्टिक निकाल रहे हैं। इसी तरह ढाई एकड़ में रजनीगंधा, एक एकड़ में ग्लेडियस और आधे एकड़ में सेवंती लगाया है। प्रायोगिक तौर पर एक हजार आरकेंट्स फ्लावर भी लगाए हैं। सफल हुआ तो एक स्टिक से 40 से 50 रुपए तक आय होगी। शुभम ने जरबेरा की खेती से पहले इसकी पूरी स्टडी की। फिर पुणे से टिश्यू मंगाए। अन्य फूलों की पौध कोलकाता और बेंगलुरु से मंगवाई।