पिछली सरकार में पंचायत विभाग के अफसरों की करतूत:अमानत के 228 करोड़ रु. खाते से गायब, एजेंसी को लौटाने के पैसे नहीं
पिछली सरकार में पंचायत विभाग में अमानत के रूप में जमा 228 करोड़ रुपए गायब हो गए हैं। विभाग के तत्कालीन अफसरों ने वित्त विभाग से मंजूरी लिए बगैर ही खाते से उक्त राशि निकाल ली। यह राशि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाय) की सड़कों के निर्माण की शर्तों के तहत 141 ठेकेदारों से यह राशि ली गई थी। विभाग के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह इनका पैसा कहां से और कैसे लौटाए। दरअसल, पीएमजीएसवाय के तहत नवीनीकरण/ मेन्टेनेंस कार्यों के लिए निविदा मंजूर करने के बाद 10% से अधिक माइनस एसओआर रेट डालने वाले ठेकेदारों से एपीएस की राशि जमा कराई जाती है, जो निर्माण पूरा होने के बाद ठेकेदार को वापस करनी होती है। 63 ठेकेदारों द्वारा एपीएस के रूप में जमा की गई 26.35 करोड़ रुपए छत्तीसगढ़ ग्रामीण सड़क विकास अभिकरण (सीजीआरआरडीए) के खाते में है ही नहीं। इसी तरह दूसरी अन्य निधियों में जमा राशि जो ठेकेदारों को निर्माण पूर्ण होने के बाद लौटानी थी, वो भी खाते में नहीं है। इस तरह अमानत के कुल 228.22 करोड़ रुपए गायब हैं।
तत्कालीन प्रमुख अभियंता की मंजूरी से निकली राशि
तत्कालीन प्रमुख अभियंता अरविंद कुमार राही की मंजूरी से यह राशि भुगतान की गई है। विभागीय सूत्रों के अनुसार राही, तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी आलोक कटियार और तत्कालीन मुख्य अभियंता(ईएनसी) आर बारी इस वित्तीय अनियमितता के लिए जिम्मेदार हैं। ब्याज की राशि भी खर्च कर दी
अफसरों ने उक्त राशि से मिला ब्याज भी खर्च कर दिया। हद तो ये है कि इसका ब्योरा तक विभाग के पास नहीं है। बताया जा रहा है कि तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने निविदा की शर्तें 2019 में अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए बदल दी थीं। बता दें कि पूर्व में टेंडर की शर्तों के अनुसार निर्माण कार्यों की एपीएस की राशि को एफडीआर के रूप में जमा किया जाता था, उक्त एफडीआर पर ठेकेदार को ब्याज भी मिलता था। इस मामले की जांच हम कराएंगे
मामला मेरी जानकारी में है। तत्कालीन अफसरों द्वारा ऐसा किया गया है। प्रारंभिक तौर पर तो यह बिल्कुल गलत दिखता है। इसकी जांच करवाएंगे।-विजय शर्मा, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री दस्तावेजों में बदलाव कर की गई गड़बड़ी 2019 में टेंडर डाक्यूमेंट में बदलाव करते हुए एपीएस की राशि नियम विरुद्ध आरटीजीएस के माध्यम से सीधे सीजीआरआरडीए के खाते में जमा कराई गई। इस राशि को अनियमित रूप से अन्य निर्माण कार्यों में खर्च कर दिया गया, लेकिन इसके लिए वित्त विभाग से अनुमति नहीं ली गई। यही नहीं तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने वित्त विभाग द्वारा नियुक्त वित्त नियंत्रक को हटाकर एक अधीक्षण अभियंता(ईई) को वित्त नियंत्रक का प्रभार सौंप दिया। माना जा रहा है कि तत्कालीन प्रमुख अभियंता, तत्कालीन मुख्य अभियंता तथा तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने इस वित्तीय अनियमितता के लिए योजनाबद्ध तरीके से यह काम किया था।