सिर्फ 2 फीट नीचे दबी IED होती है डिटेक्ट:गहराई में बम ढूंढने कोई तकनीक नहीं, बस्तर में निर्माणाधीन-उखड़ी सड़क ही इस्तेमाल करते हैं नक्सली
तारीख- 6 जनवरी 2025
बीजापुर में IED ब्लास्ट कर जवानों की गाड़ी को उड़ाया, 9 शहीद। तारीख- 26 अप्रैल 2022
दंतेवाड़ा के अरनपुर में जवानों की गाड़ी ब्लास्ट की, 11 शहीद। तारीख- 23 मार्च 2021
नारायणपुर में IED ब्लास्ट कर बस को उड़ाया, 5 शहीद, 12 घायल। तारीख- 9 अप्रैल 2019
दंतेवाड़ा के श्यामगिरी में ब्लास्ट कर MLA की गाड़ी को उड़ाया, 5 शहीद। तारीख- नवंबर 2018
बचेली में बस उड़ाई, जवान समेत 5 आम नागरिक मारे गए। यह बस्तर में हुई वो नक्सल घटनाएं हैं, जहां नक्सलियों ने निर्माणाधीन या उखड़ी हुई सड़क के नीचे IED दबाकर रखी थी। कमांड IED का एक बटन दबाया और बस से लेकर जवानों से भरी गाड़ियों को ब्लास्ट कर उड़ा दिया। ऐसा नहीं है कि इन सड़कों पर कभी सर्च ऑपरेशन और डी-माइनिंग नहीं हुई। लेकिन BDS का मेटल डिटेक्टर इन IED को डिटेक्ट नहीं कर पाया। क्योंकि, बस्तर में तैनात BDS की टीम को दिए गए मेटल डिटेक्टर की IED ढूंढने की क्षमता केवल 2 फीट ही है। सड़क से लेकर पगडंडी पर माओवादियों ने यदि 5 से 7 फीट अंदर 50-50 किलो की भी IED प्लांट कर रखी है, तो जवान उसे ढूंढ नहीं पाएंगे। जब तक बारूद की गंध न आए, तब तक फोर्स के खोजी कुत्ते भी IED ढूंढने में नाकाम रहते हैं। धमाके में 8 DRG जवान समेत एक वाहन चालक शहीद हाल ही में 6 जनवरी को बीजापुर में हुई घटना का यही सबसे बड़ा कारण हैं। दैनिक भास्कर की टीम को सूत्रों ने बताया कि, जवानों को बेदरे कैंप से कुटरू की तरफ लाने से पहले इलाके में ROP यानी रोड ओपनिंग पार्टी निकाली गई थी। BDS की टीम भी मौजूद थी। लेकिन, IED को डिटेक्ट नहीं कर पाई। धमाके में 8 DRG जवान समेत एक वाहन चालक शहीद हो गए। गोलियों से ज्यादा जमीन के अंदर दबे बारूद से खतरा बस्तर में नक्सलियों से आमने-सामने की लड़ाई और गोलियों से ज्यादा जमीन के अंदर दबे बारूद से खतरा होता है। कई बार जवान सर्च ऑपरेशन पर निकलते हैं, तो माओवादी उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए पेड़ या फिर पगडंडी रास्तों पर डेढ़ से दो फीट अंदर IED दबाकर रखते हैं। ये ज्यादातर 2, 3 या फिर 5 किलो की छोटी-छोटी प्रेशर IED होती है। पैर पड़ने पर धमाका हो जाता है। 5 से 7 फीट में दबाते हैं कमांड IED माओवादी सड़कों के नीचे करीब 5 से 7 फीट अंदर कमांड IED प्लांट कर रखते हैं। ये IED 40, 50, 60 या फिर 70 किलो की होती है। ज्यादा नीचे इसलिए दबाते हैं ताकि जवान इसे खोज न पाएं, या फिर किसी भी तरफ से IED को कोई नुकसान न पहुंचे वह सुरक्षित रहे। 50-60 किलो की IED की क्षमता इतनी होती है कि वह बख्तर बंद गाड़ी के भी परखच्चे उड़ा देती है। बीजापुर में हुए ब्लास्ट में माओवादियों ने महज 60 किलो की IED का इस्तेमाल किया था। धमाके के बाद वाहन समेत जवानों के शवों के अंग करीब 500 मीटर दूर तक फेंका गए। BDS के जवान बोले- अच्छी मशीनें रहे तो ढूंढने में होगी आसानी दैनिक भास्कर से बीजापुर BDS की टीम के एक जवान खेतु राम सोरी ने बताया कि, अभी उनकी टीम जिस मशीन का इस्तेमाल कर रही है। उससे करीब डेढ़ से 2 फीट अंदर बड़ी IED को वे ढूंढ पाते हैं। उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि यह मशीन ज्यादा अंदर दबी IED को नहीं ढूंढ पाती है और बाद में कोई बड़ी घटना हो जाती है। जवान ने कहा कि यदि उन्हें अच्छी मशीनें मिले तो नक्सलियों के हर मंसूबों को नाकाम कर देंगे। ऑपरेशन में सबसे आगे होती है यही टीम दरअसल, नक्सलियों के खिलाफ जब भी सर्च ऑपरेशन चलाया जाता है, तब जवानों की पूरी टोली के आगे BDS की टीम ही रहती है। साथ ही खोजी कुत्ते भी होते है। ये ही रास्ता क्लियर करते हैं। पिछले 24 सालों में मिली 3459 IED बस्तर में सर्च ऑपरेशन के दौरान जवानों ने पिछले 24 सालों में (साल 2001 से 13 दिसंबर 2024 तक) कुल 3459 IED रिकवर की है। साथ ही बस्तर में मुठभेड़ और IED ब्लास्ट की चपेट में आने से अब तक कुल 1313 जवान शहीद हुए हैं। पिछले 5 सालों में इतनी IED बरामद ……………………………………………………………….. इससे संबंधित यह खबर भी पढ़िए… बीजापुर नक्सली हमला…3 साल पहले बारूद बिछाकर गाड़ी उड़ाई: सड़क बनते समय ही आईईडी लगा चुके थे नक्सली, डीआरजी ही थे निशाने पर तारीख 6 जनवरी, समय दोपहर 2 बजे और जगह कुटरू का अंबेली गांव। यह वो समय और तारीख है, जब बीजापुर जिले में नक्सलियों ने DRG जवानों से भरी एक गाड़ी को ब्लास्ट कर उड़ा दिया। इसमें 8 जवान और एक ड्राइवर शहीद हो गए। यह साल 2025 का पहला सबसे बड़ा नक्सली हमला है। पढ़ें पूरी खबर…