आयरलैंड के वैज्ञानिकों का दावा, ब्लड क्लॉटिंग भी है लॉन्ग कोविड सिंड्रोम का लक्षण

मरीजों में लॉन्ग कोविड की बड़ी वजह खून के थक्के जमना है। यह दावा आयरलैंड के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में किया है। वैज्ञानिकों का कहना है, शरीर में थकान और फिजिकल फिटनेस में बदलाव होने पर मरीजों को जांच कराने की जरूरत है कि कहीं उनमें खून के थक्के तो नहीं जम रहे।

रिसर्च करने वाली आयरलैंड की RCSI यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल एंड हेल्थ साइंस के शोधकर्ताओं का कहना है, हमने लॉन्ग कोविड से जूझ रहे 50 लोगों पर स्टडी की। रिसर्च करने का लक्ष्य यह पता लगाना था कि कहीं इसकी वजह ब्लड क्लॉटिंग तो नहीं।परिणाम के तौर पर सामने आया कि स्वस्थ लोगों के मुकाबले लॉन्ग कोविड के मरीजों में थक्कों के लिए जिम्मेदार क्लॉटिंग मार्कर बढ़े हुए थे। जो मरीज कोरोना के संक्रमण के बाद हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे उनमें ये क्लॉटिंग मार्कर और अधिक बढ़े हुए थे।

क्या है लॉन्ग कोविड ?

लॉन्ग कोविड की कोई मेडिकल परिभाषा नहीं है। आसान भाषा में इसका मतलब है शरीर से वायरस जाने के बाद भी कुछ न कुछ लक्षण दिखते रहना। कोविड-19 के जिन मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है, उन्हें महीनों बाद भी समस्याएं हो रही हैं। कोविड-19 से उबरने के बाद भी लक्षणों का लंबे समय तक बने रहना ही लॉन्ग कोविड है।

खून के थक्के जमना भी लॉन्ग कोविड का एक लक्षण

शोधकर्ता हेलेन फोगार्टी का कहना है, रिसर्च में यह सामने आया है कि खून के थक्के जमना भी लॉन्ग कोविड सिंड्रोम का एक लक्षण है। ऐसे मरीजों में सूजन के मामले तो घट रहे हैं, लेकिन थक्के बढ़े हुए हैं।

शोधकर्ता प्रो. जेम्स ओ’डोन्नेल के मुताबिक, लॉन्ग कोविड की असल वजह को समझने के बाद अब इसका असरदार इलाज किया जा सकेगा क्योंकि दुनियाभर में लाखों लोग इससे जूझ रहे हैं।

ऐसे मरीजों में 200 से ज्यादा लक्षण दिख सकते हैं

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं का कहना है, लॉन्ग कोविड के मरीजों में 10 अंगों से जुड़े 200 से ज्यादा लक्षण दिख सकते हैं। रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद जिन मरीजों में लक्षण दिखते रहे हैं, वैज्ञानिकों ने उन पर स्टडी की। रिपोर्ट में सामने आया कि लॉन्ग कोविड के मरीजों में सबसे कॉमन लक्षण थकान, बेचैनी और सोचने-समझने की क्षमता घटना रहे। इसके अलावा कंपकंपी, खुजली, महिलाओं के पीरियड्स में बदलाव, सेक्शुअल डिस्फंक्शन, हार्ट पेल्पिटेशन, यूरिन स्टोर करने वाले ब्लैडर को कंट्रोल न कर पाना, याद्दाश्त घटना, धुंधला दिखना, डायरिया, कानों में आवाजें सुनाई देना और दाद जैसे लक्षण भी देखे गए हैं।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की न्यूरोसाइंटिस्ट एथेना अक्रमी कहती हैं कि ऐसे मरीजों में आगे कितनी तरह के लक्षण दिखेंगे, इसकी बहुत कम जानकारी मिल पाई है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जैसे-जैसे समय बीतता है, लक्षण दिखाई देने शुरू हो जाते हैं। ये कितनी गंभीर होंगे और इनका रोजमर्रा की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा, इसका पता भी बाद में ही चलता है।अभी तक हुई रिसर्च में पता चला है कि लॉन्ग कोविड के मामले में लक्षण 35 हफ्तों के बाद तक दिखना जारी रह सकते हैं। ऐसा होने का खतरा 91.8% तक रहता है। रिसर्च में शामिल हुए 3,762 मरीजों में से 3,608 यानी करीब 96% मरीजों में ऐसे लक्षण 90 दिन के बाद भी दिखते रहे थे। वहीं, 65% मरीज ऐसे भी थे, जिनमें लक्षण 180 दिनों तक दिखाई दिए थे।

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