“हमारे बच्चों को सही-सलामत लौटा दो, प्लीज़…” : जब सिलक्यारा में ऑस्ट्रेलियाई टनलिंग एक्सपर्ट ने की थी प्रार्थना

सुरंग से मज़दूरों को निकाल लिए जाने के बाद भी आरनॉल्ड डिक्स ने इसे चमत्कार की संज्ञा देते हुए कहा कि उन्हें सुरंग के बाहर बने अस्थायी मंदिर में जाकर परमात्मा का ‘शुक्रिया अदा करना’ होगा.

नई दिल्ली: 

उत्तराखंड में सिलक्यारा की सुरंग में 17 दिन तक चले ऑपरेशन के बाद उन 41 मज़दूरों को मंगलवार रात सुरक्षित निकाल लिया गया है, जिनके बचाव के लिए लगातार की जा रही कोशिशों में कई बार अड़ंगे आए. इसी बचाव अभियान से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह है कि ऑस्ट्रेलियाई टनलिंग एक्सपर्ट आरनॉल्ड डिक्स पहले दिन से ही यहां मदद करने के लिए मौजूद थे, और यही नहीं, उन्होंने भगवान से प्रार्थना भी की, “हमारे बच्चों को सही-सलामत लौटा दो, प्लीज़…”

सुरंग से मज़दूरों को निकाल लिए जाने के बाद भी आरनॉल्ड डिक्स ने इसे चमत्कार की संज्ञा देते हुए कहा कि उन्हें सुरंग के बाहर बने अस्थायी मंदिर में जाकर परमात्मा का ‘शुक्रिया अदा करना’ होगा. बुधवार सुबह समाचार एजेंसी ANI से बातचीत में आरनॉल्ड डिक्स ने कहा, “मैंने कहा था, क्रिसमस से पहले ही 41 लोग घर लौटेंगे, और किसी को चोट नहीं आएगी…”

मज़े की बात यह है कि आरनॉल्ड डिक्स को सभी दिक्कतों के बावजूद भरोसा था कि ये मज़दूर सुरक्षित निकल आएंगे. एक स्थानीय यूट्यूब चैनल ‘पुनः गांव की ओर’ से बातचीत में आरनॉल्ड ने कहा था, “यह 3000 साल पुरानी किसी पौराणिक कथा सरीखा लगता है… इंसानी इतिहास में इस तरह पहाड़ में हुए हादसे में कभी भी ऐसा नहीं हुआ है कि किसी को चोट न आई हो… यही नहीं, पहाड़ ने भले ही हमारे लोगों को सूरज से दूर रखा, लेकिन उन्हें गर्मी देता रहा… हमें इतना मौका दिया कि हम उन्हें पानी-खाना पहुंचाते रह सके… बस, अब तो इतना ही कहेंगे, पहाड़, हमारे बच्चों को हमें लौटा दो, प्लीज़…”

24 नवंबर को की गई बातचीत में आरनॉल्ड डिक्स कहते हैं, “हम पहाड़ से, कुदरत से लड़ रहे हैं… हमने पूरी कोशिश की ड्रिलिंग की, और पहाड़ ने हमें नहीं रोका (कोई अड़चन नहीं लगाई)… लेकिन जिस पल हमें लगा कि अब दरवाज़ा खुल जाएगा, तभी मशीन टूट गई… हम फिर कोशिश कर रहे हैं…”

यह पूछे जाने पर कि आप भगवान में कितना विश्वास करते हैं, आरनॉल्ड डिक्स का कहना था, “ज़मीन के नीचे काम करने वाले की हैसियत से हमेशा ऊपरवाले की ताकत के आगे नतमस्तक रहता हूं… दुनिया के किसी भी कोने में जब पहाड़ों में इस तरह का काम होता है, हर जगह कम से कम एक मंदिर (पूजा स्थल) ज़रूर होता है, भले ही उसमें किसी भी देव की आराधना की जाती हो…”

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