नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) के छठे चरण में शनिवार को देश के सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 57 सीटों पर मतदान होगा. इनमें जम्मू कश्मीर की अनंतनाग-राजौरी सीट (Anantnag-Rajouri Lok Sabha Constituency) भी शामिल है. पहले इस सीट पर तीसरे चरण में सात मई को मतदान होना था, लेकिन खराब मौसम की वजह से मतदान की तारीख 25 मई कर दी गई.परिसीमन के बाद यह सीट पहली बार अस्तीत्व में आई है. जम्मू कश्मीर के इतिहास में यह पहली बार होगा कि जम्मू के राजौरी और पुंछ जिले के लोग कश्मीर घाटी के अनंतनाग और कुलगाम जिले के मतदाताओं के साथ मतदान करेंगे.यह सीट राज्य की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है. यहां से पीडीपी (Peoples Democratic Party) की नेता महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) समेत कुल 20 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं.
कैसे बनी अनंतनाग-राजौर सीट
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था. इसके बाद बने केंद्र शासित राज्य जम्मू कश्मीर के लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन कराया गया. इसके बाद अनंतनाग-राजौरी सीट अस्तित्व में आई. इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में अनंतनाग लोकसभा सीट में कुलगाम, अनंतनाग, शोपियां और पुलवामा जिले के 16 विधानसभा क्षेत्र आते थे.परिसीमन के बाद कुलगाम, अनंतनाग, शोपियां, राजौरी और पुंछ जिले के कुल 18 विधानसक्षा क्षेत्र आते हैं. इस सीट पर पहले तीसरे चरण में सात मई को मतदान होना था, लेकिन लगातार बारिश और बर्फबारी की वजह से मतदान की तारीख बढाकर 25 मई कर दी गई.
इस सीट पर 18.30 लाख मतदाता हैं. इनमें 8.99 लाख महिलाएं हैं. यहां करीब 81 हजार नए मतदाता बने हैं, जो पहली बार चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेकर मतदान करेंगे. यहां कुल 2,338 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. इनमें से 2,113 ग्रामीण इलाकों में और 225 शहरी इलाकों में हैं.
अनंतनाग-राजौर सीट पर बीजेपी नहीं है मैदान में
अनंतनाग-राजौरी सीट पर मुख्य मुकाबला पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ और अपनी पार्टी से जफर इकबाल मन्हास के बीच माना जा रा है.अपनी पार्टी को बीजेपी का अनाधिकारिक समर्थन हासिल है.कांग्रेस छोड़कर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद की पार्टी भी यहां के चुनाव मैदान में है.इस सीट पर कुल 20 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं.
जम्मू कश्मीर में बीजेपी की नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे क्षेत्रीय दलों के एकाधिकार को तोड़ने के लिए पहाड़ी जातीय जनजातियों पर नजर थी.लेकिन उसने इस सीट में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है.पहाड़ियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के बाद, बीजेपी को उम्मीद थी कि पहाड़ी जनजाति समुदाय उसे समर्थन देगा.लेकिन भाजपा ने केवल हिंदू बहुल जम्मू की दो सीटों जम्मू और उधमपुर पर ही उम्मीदवार उतारे हैं.वहीं मुस्लिम बहुल तीन सीटों पर उसने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.
जम्मू कश्मीर का चुनावी गणित
साल 2019 के चुनाव में जम्मू कश्मीर में लोकसभा की छह सीटे थीं. इनमें से तीन बीजेपी और तीन नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास थीं. बीजेपी ने जम्मू, उधमपुर और लद्दाख की सीट जीती थी. वहीं अनंतनाग, बारामुला और श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत दर्ज की थी. जम्मू कश्मीर के बंटवारे के बाद राज्य में केवल पांच सीटें ही रह गई हैं. बीजेपी ने बारामूला, श्रीनगर और नई सीट राजौरी-अनंतनाग सीट पर इस बार उम्मीदवार नहीं दिए हैं. साल 1996 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि बीजेपी राज्य में इन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही है.वहीं कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ सीटों का तालमेल किया है. इसके तहत कांग्रेस को उधमपुर, जम्मू और लद्दाख की सीट मिली है, वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के हिस्से में राजौरी-अनंतनाग, श्रीनगर और बारामूला की सीटें आई हैं.
राज्य में चुनाव के दौरान हुए आतंकी हमले में इंडियन एयरफोर्स के एक कॉर्पोरल, बीजेपी से जुड़े एक पूर्व सरपंच और एक सरकारी अधिकारी की हत्या कर दी गई. इन घटनाओं के बाद भी राज्य के चुनाव माहौल पर कोई असर नहीं पड़ा.इस दौरान श्रीनगर और बारामूला लोकसभा सीट पर रिकॉर्ड तोड़ मतदान हुआ. यह देखकर अनंतनाग-राजौरी सीट पर तुनाव प्रचार में तेजी आई. जम्मू संभाग के राजौरी और पुंछ जिले में अच्छा मतदान होता रहा है. वहीं दक्षिण कश्मीर में के आंकड़े उत्साहजनक नहीं होते हैं. लेकिन इस बार जैसे श्रीनगर और बारामूला में मतदान हुआ है. उससे इस सीट पर भी मतदान का फीसद बढ़ने का अनुमान है.
अनंतनाग-राजौरी का त्रिकोणीय मुकाबला
अनंतनाग-राजौरी सीट पर पीडीपी से पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती,नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ और अपनी पार्टी से जफर इकबाल मन्हास के बीच मुकाबला माना जा रहा है. वहीं डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के मोहम्मद सलीम पर्रे नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
संयुक्त जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का जनाधार इसी इलाके में सबसे ज्यादा है. कश्मीरी निवासी मुफ्ती को राजौरी-पुंछ इलाके में पहाड़ी समुदाय का जनसर्थन मिल सकता है. उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद 1998 में यहां से चुनाव जीत चुके हैं. वहीं 2004 और 2014 में महबूबा अनंतनाग से ही लोकसभा का चुनाव जीता था. पीडीपी अपनी साख बचाने की लड़ाई लड़ रही है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार मियां अल्ताफ हुसैन लारवी कश्मीर के कंगन के रहने वाले हैं. वे अबतक कोई चुनाव नहीं हारे हैं.अल्ताफ के पिता और दादा भी विधायक रह चुके हैं. अल्ताफ 1987, 1996, 2002, 2008 और 2014 में कंगन से विधायक चुने गए थे. अल्ताफ गुर्जर, बक्करवाल और पहाड़ी समुदाय के एक बड़े वर्ग के धर्मगुरु हैं.वहीं अपनी पार्टी के उम्मीदवार जफर इकबाल मन्हास शोपियां के रहने वाले हैं. अपनी पार्टी को बीजेपी का समर्थन हासिल है. इसका फायदा मन्हास को राजौरी और पुंछ इलाके में मिल सकता है.