महाराष्ट्र में बाहरी बनाम मराठी बड़ा मुद्दा, फिर BJP ने क्यों किया नजरअंदाज? 72 साल के लेखे-जोखा से समझें

Lok Sabha Elections 2024 : मुंबई में खूब चर्चा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मराठी या गैर-मराठी उम्मीदवारों में से किसको चुनना चाहिए? मुंबई की पहचान अब हिंदी भाषी शहर से भी की जाने लगी है.

Lok Sabha Elections 2024 : मुंबई (Mumbai) में इस बार लगभग हर राजनीतिक दल ने मराठी उम्मीदवारों को ही लोकसभा चुनाव का टिकट दिया है मगर मुंबई का इतिहास इससे बिलकुल अलग है. 1951 के बाद से सभी लोकसभा चुनावों में कुल 94 सांसदों ने मुंबई की विभिन्न सीटों का प्रतिनिधित्व किया था. इनमें से 42 (लगभग 45 प्रतिशत) गैर-मराठी रहे. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस (Congress) ने अपनी 2 सीटों पर केवल मराठी चेहरों को टिकट दिया है. कांग्रेस ने मुंबई की उत्तर मध्य सीट से वर्षा गायकवाड़ को टिकट दिया है. वहीं, उत्तर मुंबई से भूषण पाटिल को टिकट सौंपा. दोनों ही मराठी चेहरे हैं. जबकी बीजेपी (BJP) मुंबई में 3 सीटों पर लड़ रही है. इनमें 2 उम्मीदवार गैर-मराठी हैं. उत्तर मुंबई से पीयूष गोयल और मुंबई की नार्थ ईस्ट से मिहिर कोटेचा को टिकट मिला है. सिर्फ एक उम्मीदवार उज्ज्वल निकम हैं, जो मराठी हैं. उज्ज्वल निकम को उत्तर मध्य सीट से टिकट मिला है. हालांकि, शिवसेना (UBT) और शिवसेना शिंदे गुट ने सिर्फ मराठी चेहरों पर ही भरोसा किया है.

कांग्रेस ने भाजपा पर लगाए आरोप
लोकसभा चुनाव के लिहाज से महाराष्ट्र सब से महत्वपूर्ण राज्यों के रूप में देखा जाता है. मुंबई में मराठी बनाम बाहरी की लड़ाई एक लंबे समय से देखने को मिलती रही है, लेकिन एक दौर में इसी शहर के ज्यादातर सांसद गैर-मराठी रहे हैं. हालांकि अब स्थिति ऐसी हो चली है कि 2024 में मुंबई से अधिकतर सीटों पर मराठी समाज से चेहरों को उतारा गया है. कांग्रेस प्रत्याशी वर्षा गायकवाड़ बताती हैं कि मुंबई में हर प्रांत के लोग आते हैं रोजी-रोटी कमाने. मुंबई उनको अपनाती है. कांग्रेस मराठी और गैर-मराठी दोनों को टिकट देती रही है लेकिन भाजपा मराठी को मुंबई में टिकट नहीं देती. ऐसा वह मुंबई में विभाजन करने के लिए कर रही है. सब कुछ मुंबई से बाहर ले जाया जा रहा है. बीजेपी राजनीति कर रही है. मुंबई में पहली बार ऐसा हो रहा है कि अधिकतर उम्मीदवार मराठी हैं.

संजय निरुपम ने किया पलटवार
वर्षा गायकवाड़ के बयान का जवाब देते हुए महायुति में शामिल हुए संजय निरुपम ने कहा कि मुंबई एक कॉस्मो सिटी है. यहां पर हर प्रांत के लोग रहते हैं. यहां सखा पाटिल को हराने वाले जॉर्ज फर्नांडीज रहे हैं, जो मंगलोर से थे. यहां से मुरली देवड़ा जैसे लोग सांसद रहे हैं, जो मराठी चेहरा नहीं थे. कांग्रेस से पूछो की उन्होंने क्यों मुझे और मिलिंद देवड़ा को टिकट दिया था. सुनील दत्त को क्यों टिकट दिया था. हम तो मराठी भाषी नहीं हैं, मगर हम मुंबईकर हैं.

इस पार्टी ने गैर-मराठी से रखी दूरी 
मुंबई शहर में यूं तो हर प्रांत के लोग रहते हैं लेकिन गुजराती और मराठी लोगों की संख्या सबसे अधिक है. इतने सालों में कांग्रेस और भाजपा के मुंबई में ज्यादातर सांसद गैर-मराठी रहे हैं. कांग्रेस के चुने गए 43 सांसदों में से 60% गैर-मराठी थे, जबकि बीजेपी के खेमे में 53% सांसद मराठी समुदाय से बाहर से थे. वहीं शिवसेना एक मात्रा पार्टी मुंबई में रही है, जिसने सिर्फ मराठी प्रतिनिधित्व को आगे रखा है. इसके सभी 15 सांसद मराठी ही रहे हैं. मुंबई में अब तक बीजेपी की तरफ से 15 सांसद रहे हैं. इसमें से 8 गैर-मराठी थे. कांग्रेस के 43 सांसद रहे हैं, जिसमें 26 गैर-मराठी रहे. शिवसेना के अब तक 15 सांसद रहे और सभी के सभी मराठी ही रहे हैं.

इस वजह से भी बढ़ा रुतबा
राजनीतिक विशेषज्ञ विवेक भावसार के अनुसार, मुंबई में खूब चर्चा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मराठी या गैर-मराठी उम्मीदवारों में से किसको चुनना चाहिए? मुंबई की पहचान अब हिंदी भाषी शहर से भी की जाने लगी है. यहां की मातृभाषा पर 2011 की जनगणना रिपोर्ट से पता चला है कि हिंदी को अपनी मातृभाषा मानने वाले उत्तरदाताओं की संख्या मुंबई में 25.88 लाख से 40 प्रतिशत बढ़कर 35.98 लाख हो गई है. मराठी को अपनी मातृभाषा बताने वाले उत्तरदाताओं की संख्या 2001 में 45.23 लाख से 2.64 प्रतिशत घटकर 44.04 लाख हो गई थी और यह भी एक बड़ा कारण था कि अधिकतर राजनीतिक दलों ने कई सालों तक गैर-मराठी लोगों को टिकट दिया और वह जीत भी गए. मुंबई की राजनीति में भाषा का बड़ा महत्व रहा है. क्षेत्रीय दल मराठी भाषा और मराठी मानुष के मुद्दे पर वोट मांगते रहे हैं. देखना यह होगा की मुंबई कि जनता इस बार मुंबई में किसे चुनती है?

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