BJP के बागी क्या बिगाड़ेंगे उपेंद्र कुशवाहा का खेल, पवन सिंह के काराकाट से उम्मीदवारी से किसे नुकसान?

नई दिल्ली: 

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok sabha election 2024) को लेकर लगातार समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं. पिछले लगभग एक साल से यह माना जा रहा था कि एनडीए के लिए बिहार और महाराष्ट्र में सीट बंटवारे में परेशानी होगी. बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी की एनडीए में वापसी के बाद एनडीए में सीट बंटवारे में और अधिक परेशानी की आंशका थी. हालांकि लंबी बैठकों के बाद बिहार एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति बन गयी. गठबंधन के तहत 3 सीटों की मांग कर रहे उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की पार्टी राष्ट्रीय लोकमोर्चा को एक मात्र काराकाट की सीट से संतोष करना पड़ा. शुरुआत में इस बात की चर्चा थी कि उपेंद्र कुशवाहा सीट बंटवारे से नाराज हैं हालांकि बाद में वो मान गए. पीएम मोदी की सभाओं में भी उपेंद्र कुशवाहा को देखा गया.

पवन सिंह ने क्या कहा?
बीजेपी से आरा सीट से टिकट की मांग कर रहे भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने बुधवार को काराकाट सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. इससे पहले भारी विरोध के कारण उन्होंने आसनसोल सीट पर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. पवन सिंह ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि “माता गुरुतरा भूमेरू” अर्थात माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं और मैंने अपनी मां से वादा किया था की मैं इस बार चुनाव लड़ूंगा.  मैंने निश्चय किया है कि मैं 2024 का लोकसभा चुनाव काराकाट,बिहार से लड़ूंगा.

काराकाट लोकसभा सीट का क्या है समीकरण? 
2008 में हुए परिसीमन के बाद काराकाट सीट अस्तित्व में आया था. साल 2009 में पहली बार इस सीट पर चुनाव हुए थे. 2009 और 2019 के चुनाव में महाबली सिंह को जीत मिली थी वहीं 2014 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा चुनाव जीतने में सफल रहे थे. काराकाट सीट पर सबसे अधिक यादव मतदाता हैं लगभग 3 लाख, वहीं मुस्लिम वोटर्स की आबादी लगभग डेढ़ लाख मानी जाती है. कुशवाहा और कुर्मी समाज के 2.5 लाख वोटर्स हैं. राजपूत जाति के भी लगभग 2 लाख वोटर्स हैं. उपेंद्र कुशवाहा को लवकुश समाज का वोट मिलता रहा है. वहीं महाबली सिंह भी उसी समुदाय से आते हैं. दोनों ही नेताओं की जीत में लवकुश मतदाताओं की अहम भूमिका रही है.

पवन सिंह की एंट्री से उपेंद्र कुशवाहा की क्यों बढ़ सकती हैं मुश्किलें?
इंडिया गठबंधन की तरफ से गठबंधन के तहत यह सीट भाकपा माले के खाते में दी गयी है. भाकपा माले की तरफ से इस सीट पर राजा राम सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है. राजा राम सिंह भी उपेंद्र कुशवाहा के ही स्वजातीय हैं. साथ ही भाकपा माले के कैडर गांव-गांव में हैं ऐसे में वो उपेंद्र कुशवाहा को मजबूत चुनौती देंगे ही. साथ ही पवन सिंह की एंट्री से राजपूत और यादव मतों की उनके पक्ष में व्यापक गोलबंदी हो सकती है. राजद के उम्मीदवार के मैदान में नहीं होने के कारण यादव और मुस्लिम मतों का रुझान पवन सिंह की तरफ हो सकता है. पवन सिंह की लालू परिवार से नजदीकी रही है. साथ ही पवन सिंह के प्रशंसक सभी जातियों और वर्गों में पाए जाते हैं. उनके स्टेज शो में बिहार के गांवों में हजारों की भीड़ उमड़ती है.

पवन सिंह ने काराकाट सीट को ही क्यों चुना? 
पवन सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा लंबे समय से थी. हालांकि आरा सीट उनकी पहली पसंद रही थी. लेकिन आरा से बीजेपी की तरफ से टिकट नहीं मिलने के बाद काराकाट से उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. काराकाट लोकसभा सीट आरा से सटा हुआ है. यह वह क्षेत्र रहा है जहां इनके लाखों की संख्या में प्रशंसक रहे हैं. राजनीतिक समीकरण को अगर देखा जाए तो पवन सिंह ने उम्मीदवारी के ऐलान के लिए एनडीए और इंडिया गठबंधन के फैसले का इंतजार किया है. काराकाट सीट पर दोनों ही उम्मीदवार एक ही समुदाय के हैं. ऐसे में मतों के विभाजन का फायदा पवन सिंह को मिल सकता है.

उपेंद्र कुशवाहा की कम नहीं हो रही है मुश्किलें
उपेंद्र कुशवाहा एक दौर में बिहार में नीतीश कुमार के बाद लवकुश जाति के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे. हालांकि कई बार गठबंधन और पार्टियों को छोड़ने के बाद यह चुनाव उनके लिए अस्तित्व का संकट बन गया है. पिछले लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा 2 सीटों से चुनाव में उतरे थे लेकिन दोनों ही सीटों से चुनाव हार गए थे. पिछले विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी को एक भी सीटों पर जीत नहीं मिली थी. जिसके बाद वो जदयू में शामिल हो गए थे. बाद में उन्होंने जदयू से नाता तोड़कर अपनी अलग पार्टी बना ली और एनडीए में शामिल हो गए.

नीतीश की एनडीए में एंट्री के बाद कुशवाहा हुए थे असहज
नीतीश कुमार जब तक महागठबंधन में थे तो यह माना जा रहा था कि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 2014 के तर्ज पर लोकसभा की 3 सीटें मिल जाएगी. हालांकि बाद में नीतीश कुमार की एनडीए में एंट्री के बाद कुशवाहा को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा. इसी बीच उनके पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को जदयू ने तोड़कर सिवान सीट से उनकी पत्नी को उम्मीदवार बना दिया. जिसके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर जदयू पर तंज भी कसा था.

पवन सिंह के विद्रोह का कई सीटों पर पड़ सकता है असर
पवन सिंह पहली नजर में उपेंद्र कुशवाहा के लिए खतरे के तौर पर देखे जा रहे हैं. हालांकि पर्सेप्शन की लड़ाई में पवन सिंह की निर्दलीय उम्मीदवारी का असर बिहार-झारखंड की कई सीटों पर पड़ सकता है. जिन जगहों पर भोजपुरी भाषी लोगों की अच्छी संख्या है उन सीटों पर पवन सिंह का फैक्टर काम कर सकता है. काराकाट के बगल में आरा, सारण सीट पर पवन सिंह के जाने से बीजेपी को नुकसान हो सकता है. झारखंड में धनबाद, जमशेदपुर जैसे सीटों पर जहां भोजपुरी और राजपूत मतदाताओं की संख्या है उन सीटों पर भी पवन सिंह के विद्रोह का असर एनडीए उम्मीदवार पड़ने की संभावना है.

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