शाह को 2008 में मुंबई की सीबीआई अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी और वह 15 साल चार महीने जेल में बिता चुके थे। मई 2022 में, जस्टिस रस्तोगी की अगुवाई वाली एक पीठ ने फैसला सुनाया था कि गुजरात सरकार के पास छूट के अनुरोध पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है क्योंकि अपराध गुजरात में हुआ था।
पहले भी दायर हुई थी जनहित याचिका
लाइव लॉ के मुताबिक इस मामले में दोषियों को दी गई राहत पर सवाल उठाते हुए माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, पूर्व आईपीएस कार्यालय मीरा चड्ढा बोरवंकर और कुछ अन्य
पूर्व सिविल सेवक, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन आदि ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाओं का जवाब देते हुए गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को एक हलफनामे में बताया है कि यह फैसला दोषियों के अच्छे व्यवहार और उनके द्वारा 14 साल की सजा पूरी होने को देखते हुए केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद लिया गया था। राज्य के हलफनामे से पता चला कि सीबीआई और ट्रायल कोर्ट (मुंबई में विशेष सीबीआई कोर्ट) के पीठासीन न्यायाधीश ने इस आधार पर दोषियों की रिहाई पर आपत्ति जताई कि अपराध गंभीर और जघन्य है।