ज्ञानवापी के बाद अब MP में भोजशाला का होगा ASI सर्वे, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ का आदेश
पीठ ने कहा कि एएसआई रिपोर्ट मिलने के बाद याचिकाकर्ता हिंदू फ्रंट के वकील विष्णु शंकर जैन की भोजशाला में स्थित शारदा देवी के मंदिर परिसर में प्रतिदिन पूजा के अधिकार को बहाली के दावे पर सुनवाई होगी.
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में काशी और मथुरा के बाद अब मध्य प्रदेश की भोजशाला का वैज्ञानिक सर्वे होगा. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि एएसआई भोजशाला की ऐतिहासिकता का वैज्ञानिक और तकनीकी सर्वेक्षण करे.
जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस देव नारायण मिश्र की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि एक्सपर्ट कमेटी दोनों पक्षकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में ग्राउंड पेनिट्रेशन रडार सिस्टम सहित सभी उपलब्ध वैज्ञानिक तरीकों के साथ परिसर के पचास मीटर के दायरे में समुचित स्थानों पर जरूरत पड़ने पर खुदाई करा कर सर्वेक्षण करे. तस्वीरें और वीडियो बनाए जाएं. साथ ही 29 अप्रैल के पहले कोर्ट को रिपोर्ट दी जाए. 29 अप्रैल को कोर्ट में अगली सुनवाई है.
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ ने करीब 1,000 साल पुराने भोजशाला परिसर की वैज्ञानिक जांच अथवा सर्वेक्षण अथवा खुदाई या ‘ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार’ (जीपीआर) सर्वेक्षण समयबद्ध तरीके से करने की मांग की थी. भोजशाला के सरस्वती मंदिर होने के अपने दावे के समर्थन में हिंदू पक्ष ने हाईकोर्ट के सामने इस परिसर की रंगीन तस्वीरें भी पेश की हैं.
याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन की दलीलों के बाद हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर कहा कि इस न्यायालय ने केवल एक ही निष्कर्ष निकाला है कि भोजशाला मंदिर व कमाल मौला मस्जिद का जल्द से जल्द वैज्ञानिक सर्वेक्षण, अध्ययन कराना, ASI का संवैधानिक और वैधानिक दायित्व है.
- विवादित भोजशाला मंदिर सह कमाल मौला मस्जिद परिसर के साथ-साथ आसपास के परिधीय रिंग क्षेत्र के पूरे 50 मीटर क्षेत्र के जीपीआर-जीपीएस सर्वेक्षण के नवीनतम तरीकों, तकनीकों और तरीकों को अपनाने के माध्यम से पूर्ण वैज्ञानिक जांच, सर्वेक्षण और उत्खनन हो, परिसर की सीमा से वृत्ताकार परिधि का निर्माण किया जाए.
- मैदान; जमीन के नीचे और ऊपर दोनों जगह स्थायी, चल और अचल संरचनाएं, जो पूरे परिसर की दीवारों, स्तंभों, फर्शों, सतहों, ऊपरी शीर्ष, गर्भगृह का निर्माण करती हैं, ऊपर और नीचे विभिन्न संरचनाओं की उम्र, जीवन का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग पद्धति को अपनाकर एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच की जानी चाहिए.
- ASI के महानिदेशक/अतिरिक्त महानिदेशक की अध्यक्षता में ASI के कम से कम पांच वरिष्ठतम अधिकारियों की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तैयार की गई एक उचित दस्तावेज वाली व्यापक मसौदा रिपोर्ट इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से छह सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी. उक्त विशेषज्ञ समिति में दोनों प्रतिस्पर्धी समुदायों के अधिकारियों (यदि उक्त पद और रैंक उपलब्ध हो) का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास किया जाना चाहिए.
- वादी और प्रतिवादी के दो (2) नामांकित प्रतिनिधियों की उपस्थिति में संपूर्ण सर्वेक्षण कार्यवाही की तस्वीरें लेना और वीडियोग्राफी हो.
- पूरे परिसर के बंद/सील कमरों, हॉलों को खोला जाए और प्रत्येक कलाकृति, मूर्ति, देवता या किसी भी संरचना की पूरी सूची तैयार हो और संबंधित तस्वीरों के साथ इसे जमा किया जाए. ऐसी कलाकृतियों, मूर्तियों, संरचनाओं को वैज्ञानिक जांच, कार्बन डेटिंग और सर्वेक्षण के समान अभ्यास के अधीन किया जाना चाहिए. इसे न्यायालय के समक्ष दायर की जाने वाली रिपोर्ट में अलग से शामिल किया जाना चाहिए.
- कोई अन्य अध्ययन, जांच, जो ASI की उक्त पांच (5) सदस्य समिति को आवश्यक लगता है, वास्तविक प्रकृति का पता लगाने की दिशा में, पूरे परिसर की मूल प्रकृति को नष्ट, विरूपित, नष्ट किए बिना किया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं द्वारा दावा की गई राहत या विवादित परिसर में पूजा और अनुष्ठान करने के अधिकार से संबंधित अन्य सभी मुद्दों और प्रस्तुतियों पर विशेषज्ञ समिति से उपरोक्त रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही विचार और निर्धारण किया जाएगा.
विवादित परिसर पर बने वक्फ की वैधता से जुड़ा मामला; कार्यवाही में राहत देने या उन राहतों का दावा करने के लिए याचिकाकर्ताओं को सिविल सूट में वापस लाने के बारे में सब कुछ निर्धारित किया जाएगा और फैसला सुनाया जाएगा. 29 अप्रैल को अगली सुनवाई होगी.