बेनामी लेनदेन कानून के कुछ प्रावधानों को रद्द करने का मामला: केंद्र सरकार ने SC में दाखिल की पुनर्विचार याचिका

24 अगस्त 2022 को बेनामी (लेन-देन निषेध) संशोधन अधिनियम, 1988 और 2016 को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के संशोधन को रद्द किया था और कहा था कानून को पूर्वव्यापी लागू नहीं किया जा सकता.

नई दिल्ली: 

बेनामी लेनदेन कानून के कुछ प्रावधानों को रद्द करने के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है और सुप्रीम कोर्ट से अपने 24 अगस्त 2022 के फैसले पर फिर से विचार करने की गुहार लगाई है. साथ ही याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की मांग भी की है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष जल्द सुनवाई की मांग की और कहा कि यह एक असामान्य अनुरोध है. हम पुनर्विचार की खुली अदालत में सुनवाई चाहते हैं. इस फैसले के कारण बहुत सारे आदेश पारित किए जा रहे हैं. भले ही बेनामी अधिनियम के कुछ प्रावधान चुनौती के अधीन भी नहीं थे, फिर भी उन्हें रद्द कर दिया गया. पूर्वव्यापी प्रभाव का मामला भी इसी में से एक है. इसपर CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इसे सूचीबद्ध करेंगे.

दरअसल 24 अगस्त 2022 को  बेनामी ( लेन-देन निषेध) संशोधन अधिनियम, 1988 और 2016 को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के संशोधन को रद्द किया था और कहा था कानून को पूर्वव्यापी लागू नहीं किया जा सकता. 2016 के अधिनियम का केवल संभावित प्रभाव होगा. संशोधित अधिनियम से पहले की गई सभी कार्रवाइयों पर ये लागू नहीं होगा. संशोधन से पहले की कार्रवाई रद्द की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था ये संशोधन मनमाना और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

इस तरह के प्रावधान का कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं होगा. लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 को पूर्वव्यापी  प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता है. इसे एक्ट लागू होने के दिन से ही लागू किया जा सकता है. CJI एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र द्वारा दायर याचिका पर ये फैसला सुनाया था.  हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि  2016 का संशोधन अधिनियम प्रकृति में संभावित है और वो पिछले समय के लिए लागू नहीं हो सकता.

बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जो बेनामी लेनदेन का निषेध करता है. यह पहली बार 1988 में पारित हुआ तथा 2018  में इसमें संशोधन किया गया था. संशोधित बिल में बेनामी संपत्‍तियों को जब्‍त करने और उन्‍हें सील करने का अधिकार है. साथ ही, जुर्माने के साथ कैद का भी प्रावधान है.

मूल अधिनियम में बेनामी लेनदेन करने पर तीन साल की जेल और जुर्माना या दोनों का प्रावधान था. संशोधित कानून के तहत सजा की अवधि बढ़ाकर सात साल कर दी गई है. जो लोग जानबूझकर गलत सूचना देते हैं, उन पर सम्पत्ति के बाजार मूल्य का 10 प्रतिशत तक जुर्माना भी देना पड़ सकता है. नया कानून घरेलू ब्लैक मनी खासकर रियल एस्टेट सेक्टर में लगे काले धन की जांच के लिए लाया गया है.

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