नूपुर शर्मा विवाद… ‘धर्म संकट’ में मोदी सरकार, 8 साल में पहली बार प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती
मोदी सरकार के सामने चुनौती बड़ी है। पहले भी कई चुनौतियां सामने आई लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। इस बार पीएम मोदी के सामने अपने पार्टी के आधार और आधार से बाहर के मतदाताओं के साथ व्यापक जुड़ाव बनाए रखने के प्रयास के बीच खाई को पाटने की जिम्मेदारी उन पर है।
नई दिल्ली: मोदी सरकार के 8 साल (8 Years Of Modi Government) पूरे हो गए हैं। इन 8 वर्षों के बीच मोदी सरकार के सामने कई चुनौतियां (Big Challenge) आईं जिनमें कोरोना, किसान आंदोलन और कई दूसरे मुद्दे शामिल थे। हालांकि मोदी सरकार एक बार फिर ऐसे मोड़ पर है जिसके सामने चुनौती कहीं अधिक है और राजनीति के लिहाज से कहा जाए तो महत्वपूर्ण मोड़ पर है। नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) की टिप्पणी और उसके बाद पैदा हालात, रूस यूक्रेन युद्ध के परिणाम, चीन-पाकिस्तान गठजोड़, सरकार-विपक्ष के बीच विश्वास की कमी और भारतीय जनता पार्टी-सरकार के बीच तालमेल। मोदी सरकार के सामने यह चुनौतियां हैं। क्या वाकई मोदी सरकार एक ऐसे मोड़ है जिसके सामने कई चुनौतियां हैं। स्वराज्य के संपादकीय निदेशक आर जगन्नाथन ने इसी मुद्दे पर हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है वाकई सरकार एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है।
नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद नई चुनौती
नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद कई सवाल खड़े हैं। नूपुर शर्मा की टिप्पणी से कई मुस्लिम और मुस्लिम देश नाराज हो गए। वहीं दूसरी ओर नूपुर शर्मा को खासकर मौत की धमकियों के बाद संघ परिवार की सहानुभूति है। विहिप ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। आर जगन्नाथन का कहना है कि हिंदू-मुस्लिम संबंधों में तनाव ऐसे समय में है जब पहले से ही कई चुनौतियां हैं। विकास दर को बढ़ाना, रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत पर कम से कम असर पड़े, चीन-पाकिस्तान गठजोड़ ऐसी कई चुनौतियां पहले से हैं। ऐसे वक्त में जो खाई है उसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाटने की जरूरत है।
नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद कई सवाल खड़े हैं। नूपुर शर्मा की टिप्पणी से कई मुस्लिम और मुस्लिम देश नाराज हो गए। वहीं दूसरी ओर नूपुर शर्मा को खासकर मौत की धमकियों के बाद संघ परिवार की सहानुभूति है। विहिप ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। आर जगन्नाथन का कहना है कि हिंदू-मुस्लिम संबंधों में तनाव ऐसे समय में है जब पहले से ही कई चुनौतियां हैं। विकास दर को बढ़ाना, रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत पर कम से कम असर पड़े, चीन-पाकिस्तान गठजोड़ ऐसी कई चुनौतियां पहले से हैं। ऐसे वक्त में जो खाई है उसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाटने की जरूरत है।
भारतीय जनता पार्टी का मूल वोट बैंक फिलहाल हिंदू ही हैं और वह उसके साथ बरकरार है। वहीं इसके बीच कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनकी मांग शुरू हो गई है। यह धारणा गलत साबित हुई कि राम मंदिर पर कानूनी लड़ाई जीतने और अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद हिंदू मतदाता की ओर से और अधिक मांग नहीं होगी। मथुरा और काशी मंदिर-मस्जिद विवाद एक बार फिर अदालतों में गरमा रहे हैं, लेकिन इसकी उम्मीद की जानी चाहिए थी। एक बार जब आकांक्षाएं पूरी होती हैं तो इस दिशा में और मांग बढ़ती है। अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर से बीजेपी का हिंदू आधार नहीं तृप्त होने वाला है। नूपुर शर्मा के मामले के बाद इस दिशा में एक नई बहस शुरू हो गई है। टिप्पणी के बाद सड़कों पर जो हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं उसको लेकर कई सवाल पैदा हुए हैं।
विवादास्पद मुद्दों पर 10 साल की पीएम मोदी ने मांगी मोहलत
15 अगस्त 2014 को अपने पहले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पीएम मोदी ने विवादास्पद मुद्दों पर 10 साल की मोहलत मांगी। उन्होंने तब कहा था जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, ये सभी हमारे आगे बढ़ने में बाधा हैं। आइए एक बार संकल्प लें ऐसी सभी गतिविधियों पर 10 साल के लिए रोक लगा दें। हम एक ऐसे समाज की ओर आगे बढ़ेंगे जो इस तरह के सभी तनावों से मुक्त होगा। और आप देखेंगे कि शांति, एकता, सद्भावना और भाईचारे से हमें कितनी ताकत मिलती है। पहले कार्यकाल में पार्टी ने अपने मूल एजेंडे (राम मंदिर, अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता, आदि) के साथ आगे बढ़ने से परहेज किया। प्रधानमंत्री द्वारा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों की उन्नति को लेकर उनका नारा था एक हाथ में कंप्यूटर और एक हाथ में कुरान। भाजपा के लिए हमेशा से समस्या यह रही है कि वह वास्तव में अल्पसंख्यकों के लिए जो कुछ भी करती, उसके बावजूद इसके बारे में धारणाएं एक इंच भी नहीं झुकी।
15 अगस्त 2014 को अपने पहले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पीएम मोदी ने विवादास्पद मुद्दों पर 10 साल की मोहलत मांगी। उन्होंने तब कहा था जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, ये सभी हमारे आगे बढ़ने में बाधा हैं। आइए एक बार संकल्प लें ऐसी सभी गतिविधियों पर 10 साल के लिए रोक लगा दें। हम एक ऐसे समाज की ओर आगे बढ़ेंगे जो इस तरह के सभी तनावों से मुक्त होगा। और आप देखेंगे कि शांति, एकता, सद्भावना और भाईचारे से हमें कितनी ताकत मिलती है। पहले कार्यकाल में पार्टी ने अपने मूल एजेंडे (राम मंदिर, अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता, आदि) के साथ आगे बढ़ने से परहेज किया। प्रधानमंत्री द्वारा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों की उन्नति को लेकर उनका नारा था एक हाथ में कंप्यूटर और एक हाथ में कुरान। भाजपा के लिए हमेशा से समस्या यह रही है कि वह वास्तव में अल्पसंख्यकों के लिए जो कुछ भी करती, उसके बावजूद इसके बारे में धारणाएं एक इंच भी नहीं झुकी।
इस पूरे घटनाक्रम में तीन बातें स्पष्ट हैं। एक पार्टी और मोदी दोनों को पद पर बने रहने के लिए एक दूसरे की जरूरत है। दूसरा, पार्टी का मूल आधार हिंदू है, और नूपुर शर्मा के मामले में यह और मजबूत हुआ है। तीसरा भाजपा न तो हिंदुत्व को छोड़ सकती है और न ही अपने व्यापक एजेंडे को ताकि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ सके। अपने पार्टी के आधार और आधार से बाहर के मतदाताओं के साथ व्यापक जुड़ाव बनाए रखने के प्रयास के बीच खाई को पाटने की जिम्मेदारी पीएम मोदी पर है।