नितिन गडकरी का डिमोशन और फडणवीस का प्रमोशन, महाराष्ट्र के दो नेताओं को भाजपा ने दिए क्या संकेत

केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने को उनके डिमोशन के तौर पर देखा जा रहा है तो वहीं देवेंद्र फडणवीस की एंट्री उनका कद बढ़ने की ओर इशारा करती है।

भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का पुनगर्ठन किया है। संसदीय बोर्ड में बड़ा बदलाव करते हुए नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को इससे हटा दिया गया है। इसके अलावा 15 सदस्यों वाली केंद्रीय चुनाव समिति में भी इन नेताओं को जगह नहीं मिली है। वहीं महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को भाजपा ने केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल किया है। इस फैसले को महाराष्ट्र और केंद्र में बड़े सियासी बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। एक तरफ चर्चित केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने को उनके डिमोशन के तौर पर देखा जा रहा है तो वहीं देवेंद्र फडणवीस की एंट्री उनका कद बढ़ने की ओर इशारा करती है।

इससे पहले भी गोवा और बिहार जैसे राज्यों में चुनाव की जिम्मेदारी संभाल चुके देवेंद्र फडणवीस को नेतृत्व प्रमोट कर चुका है। लेकिन अब केंद्रीय चुनाव समिति में जगह देकर साफ किया है कि फडणवीस का दायरा अब महाराष्ट्र से बाहर भी है और भाजपा में भी उनका राष्ट्रीय कद है। यही नहीं फडणवीस को आज ही महाराष्ट्र विधानपरिषद का नेता भी घोषित किया गया है। लेकिन नितिन गडकरी के साथ ऐसा नहीं है और वह अब सिर्फ केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री ही हैं। भाजपा में उनके पास कोई पद नहीं है और न ही वह किसी राज्य के प्रभारी हैं। साफ है कि नितिन गडकरी का सियासी रसूख पहले जैैसा नहीं रहा है।

लंबे समय से अहम भूमिका से बाहर रहे हैं नितिन गडकरी

बता दें कि नितिन गडकरी लंबे समय से भाजपा में साइडलाइन दिखते रहे हैं। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव हों या फिर इसी साल यूपी समेत 5 राज्यों के चुनाव की बात हो, वह कहीं भी प्रचार या फिर अन्य किसी भूमिका में नहीं दिखे थे। संसदीय बोर्ड में बदलाव करते हुए भाजपा की ओर से यह तर्क दिया गया है कि किसी भी सीएम को इसमें नहीं रखा गया है।

क्यों चौंकाने वाला है नितिन गडकरी का संसदीय बोर्ड से एग्जिट?

ऐसे में शिवराज सिंह चौहान का बाहर जाना समझ में आता है, लेकिन नितिन गडकरी का एग्जिट चौंकाने वाला है। इसकी वजह यह है कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों को संसदीय बोर्ड में शामिल करने की परंपरा रही है। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने के बाद ही यह परंपरा टूट गई थी। लेकिन नितिन गडकरी मौजूदा सियासत के सक्रिय नेताओं में हैं, ऐसे में उनका बाहर किया जाना चौंकाता जरूर है। फिलहाल नितिन गडकरी की ओर से इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है।

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