कोरिया : कलेक्टर ने मत्स्य विभाग को साढ़े 8 करोड़ फिश स्पान उत्पादन का दिया लक्ष्य

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कलेक्टर श्री कलेक्टर श्री कुलदीप शर्मा ने बुधवार को एसपी श्री प्रफुल्ल ठाकुर एवं जिला पंचायत सीईओ श्री कुणाल दुदावत के साथ झुमका स्थित मछली उत्पादन केंद्र एवं सरकुलर हेचरी मत्स्य बीज प्रक्षेत्र का निरीक्षण किया। कलेक्टर ने मत्स्य विभाग अधिकारी से जिले में मत्स्य उत्पादन की तकनीकों, पालन की गतिविधियों और मत्स्य पालकों को वितरण की जानकारी ली। सहायक संचालक मत्स्य विभाग श्री व्हाय.एन.द्विवेदी ने बताया कि यहाँ 6.5 करोड़ मत्स्य स्पॉन का उत्पादन होता है। विभागीय कार्य के तहत 10 यूनिट में मछली पालन किया जाता है। प्रत्येक यूनिट में 25 लाख स्पान दिये जाते हैं।
इसके बाद उन्होंने सरकुलर हेचरी का अवलोकन करते हुए उन्होंने साफ-सफाई की उचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए। उन्होंने जिले में मत्स्य उद्योग की संभावनाओं को देखते हुए बायोफ्लॉक तकनीक से मत्स्य उत्पादन करने के निर्देश देते हुए आने वाले सीजन में 8.5 करोड़ उत्पादन का लक्ष्य की पूर्ति करने हेतु प्रयास करने के निर्देश दिए।
’गौठानों एवं मनरेगा अंतर्गत निर्मित डबरी व तालाबों का चयन कर मत्स्य उत्पादन की आजीविका शुरू करने सीईओ जिला पंचायत को निर्देश’
कलेक्टर ने गौठानों एवं मनरेगा अंतर्गत निर्मित डबरी व तालाबों का चयन कर बड़े पैमाने पर मत्स्य उत्पादन की आजीविका शुरू करने सीईओ जिला पंचायत को निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि जिले में मत्स्य उत्पादन एवं व्यवसाय में अच्छी संभावनाएं हैं और स्वसहायता समूहों व किसानों को आयमूलक आजीविका का अतिरिक्त साधन मिल सकेगा।
क्या है बायोफ्लॉक तकनीक –
बायोफ्लॉक तकनीक’ एक कम लागत वाला तरीका है, जिसमें मछली के लिए जहरीले पदार्थ जैसे अमोनिया, नाइट्रेट और नाइट्राइट को उनके भोजन में तब्दील किया जा सकता है।
बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया का नाम है. इस तकनीक में बड़े-बड़े टैंकों में मछली पाली जाती हैं. करीब 10-15 हजार लीटर पानी के टैंकों में मछलियां डाल दी जाती हैं। इन टैंकों में पानी भरने, गंदा पानी निकालने, पानी में ऑक्सीजन देने की व्यवस्था होती है। बायोफ्लॉक तकनीक से कम पानी और कम खर्च में अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं।
टैंक सिस्टम में बायोफ्लॉक बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है। ये बैक्टीरिया मछलियों के मल और फालतू भोजन को प्रोटीन सेल में बदल देते हैं और ये प्रोटीन सेल मछिलयों के भोजन का काम करते हैं।

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