इस रमज़ान नीतीश कुमार मुसलमानों के हीरो कैसे बने

कांग्रेस विधायक शकील अहमद मानते हैं कि बिहार में भले नीतीश कुमार भाजपा के साथ हों लेकिन ये सच मानने में मुझे कोई गुरेज़ नहीं हैं कि नीतीश के कारण जहां आमिर सुभानी मुख्य सचिव की कुर्सी पर हैं तो वो हिंदू हो या मुस्लिम सब चैन की नींद सोते हैं.

पटना: 

यूं तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( Bihar Chief Minister Nitish Kumar) अमूमन हर मुद्दे पर अब अपने सहयोगी और सरकार में संख्या के आधार पर बड़े भाई भाजपा के सामने नतमस्तक रहते हैं. लेकिन इस बार रमज़ान में न केवल इफ़्तार आयोजित कर और निमंत्रित किए जाने पर हर उस इफ़्तार में शामिल होकर, उन्होंने उनके कट्टर आलोचकों के अनुसार, बिहार के मुसलमानों (Muslim) का  दिल जीता है. वहीं देश भर में उनके प्रति अल्पसंख्यक समाज में सम्मान भी बढ़ा है.इस वर्ष मुसलमानों के अनुसार रमज़ान का महीना इसलिए कठिन नहीं था क्योंकि भीषण गर्मी और तापमान आसमान पर था . बल्कि उनके अनुसार जैसे उतर प्रदेश चुनाव के समय से पहले हिजाब और बाद में बुल्डोज़र के बहाने डराने का एक नया दौर शुरू हुआ और ख़ासकर बिहार में भी सत्ता में बैठे भाजपा (BJP) के विधायक और नीतीश मंत्रिमंडल के मंत्री इस मॉडल को अपनाने की माँग करने लगे तो सब नीतीश कुमार के तरफ़ आशंका से देखने लगे .

लेकिन जैसे ही बोचहा का उप चुनाव संपन्न हुआ नीतीश ने पहले मुख्य मंत्री आवास में दो साल के कोरोना के कारण लगे प्रतिबंध के कारण एक बार फिर इफ़्तार का आयोजन किया तो लगा कि कहीं भाजपा के सदस्य इससे किनारा ना कर ले . लेकिन नीतीश के इफ़्तार में राजद , कांग्रेस और भाजपा के मंत्री वो चाहे शहनवाज़ हूसेन हो या नितिन नवीन और बिहार इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल सब पहुँचे . इसके बाद जब तेजस्वी यादव के यहाँ इफ़्तार का आयोजन हुआ तो उसमें ना केवल नीतीश कुमार घर से पैदल चलकर पहुँचे बल्कि भाजपा के तरफ़ से मंत्री और नेता सब थे . इसके पूर्व बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने जब शहर के मुस्लिम आबादी बहुल इलाक़े सब्ज़ी बाग़ के अंजुमन इस्लामिया हाल में इफ़्तार क आयोजन किया तो नीतीश वहां भी थे और बिहार भाजपा के कई नये पुराने नेता उपस्थित रहे.

सुशील मोदी पिछले दो दशकों से अधिक से इफ़्तार का आयोजन उसी जगह पर करते आए हैं, लेकिन इस बार उनकी पार्टी की आक्रामक रवैये के कारण लोगों में शंका थी कि वो आयोजन का जोखिम लेंगे या नहीं .उसके बाद नीतीश आधे दर्जन से अधिक जगहों पर इफ़्तार के आयोजन में गए और ख़ास बात ये रही कि अपने मंत्रियों के अलावा विपक्ष और अन्य नेताओं से भी मिले जैसे जीतन राम मांझी के घर पर आयोजित इफ़्तार में चिराग़ पासवान को तीन बार इशारे कर बुलाना या अपने पार्टी के इफ़्तार में तेजस्वी यादव को उनकी गाड़ी तक छोड़ने का जो उनका अन्दाज़ था वो काफ़ी सराहा गया .

इसी कारण से अब उनके राजनीतिक विरोधी कांग्रेस पार्टी के विधायक शकील अहमद खान मानते हैं कि बिहार में भले नीतीश कुमार भाजपा के साथ हों लेकिन ये सच मानने में मुझे कोई गुरेज़ नहीं हैं कि नीतीश कुमार के कारण जहां आमिर सुभानी मुख्य सचिव की कुर्सी पर हैं तो वो हिंदू हो या मुस्लिम सब चैन की नींद सोते हैं . हालांकि शकील मानते हैं कि भाजपा अब काफ़ी आक्रामक रहती हैं लेकिन नीतीश अभी तक वो चाहे बुलडोज़र का विवाद हो या लाउडस्पीकर का, झुकते नहीं दिख रहे. इससे अल्पसंख्यक समाज काफ़ी राहत महसूस करता है.

वहीं वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल क़ादिर के अनुसार आप किसी भी हिस्से में रहते हो लेकिन एक ऐसे समय जब आप राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और यहां तक कि कैबिनेट मंत्री भी इफ़्तार के आयोजन से प्रधान मंत्री की नाराज़गी ना झेलनी पड़े इसलिए अब कोसों दूर रहते हैं. वहां नीतीश का हर छोटे बड़े आयोजन में शामिल होना सबको सुकून देता हैं वो भी ऐसे समय जब अन्य राज्यों के घटना से मुस्लिम समाज में चिंता की लहर और तेज होती हैं.

नीतीश के कार्यकाल में पहले गृह सचिव रहे अब सेवानिवृत्त आईएएस अफ़ज़ल अमानुल्लाह के अनुसार,  निश्चित रूप से नीतीश अभी भी अपने धर्म निरपेक्ष छवि को बनाए रहने पर कामयाब रहे हैं, बल्कि उनके हर दिन विवादास्पद मुद्दों पर जैसे बयान आते हैं, उससे तो यही लगता है कि अल्पसंख्यक समाज के लिए उनका प्रेम सम्मान सत्ता में बने रहने के दबाव के नीचे कम नहीं हुआ है.

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