Mahamrityunjaya Mantra: जानिए महामृत्युंजय मंत्र का महत्व, कब-कब करना चाहिए जाप और किन बातों का रखें ख्याल

Lord Shiva Mahamrityunjaya Mantra Significance : हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा पाठ,आराधना और धार्मिक अनुष्ठानों में मंत्रों का विशेष महत्व बताया गया है। हिंदू मान्यताओं क अनुसार मंत्रों के जाप से भगवान को प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। हर देवी-देवताओं की उपासना के लिए अलग-अलग मंत्रों का जाप किया जाता है। इन्हीं मंत्रों में सबसे प्रभावी और ताकतवर मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। शिवपुराण और कई  धार्मिक ग्रंथों में महामृत्युंजय मंत्र के बारे में इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना सबसे अच्छा उपाय होता है। कई गंभीर बीमारियों, संकटों और रूकावटों को दूर करने के लिए इस मंत्र का जाप बहुत ही असरदार माना गया है। नियमित रूप से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। इसके अलावा किसी व्यक्ति की कुंडली में मौजूद कई ग्रह दोषों का दूर करने लिए भी महामृत्युंजय का जाप उपयोगी होता है। इस शिव मंत्र में इतनी ऊर्जा होती है कि अकाल मृत्यु को भी टाला जा सकता है।
पूर्ण महामृत्युंजय मंत्र
ऊं हौं जूं सः ऊं भूर्भुवः स्वः ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊं स्वः भुवः भूः ऊं सः जूं हौं ऊं
महामृत्युंजय मंत्र का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व 
महामृत्युंजय मंत्र का आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ इसका वैज्ञानिक महत्व भी काफी है। स्वर सिद्धांत में इस मंत्र के जाप की उपयोगिता के बारे में बताया गया है। ऊं के उच्चारण में व्यक्ति गहरी सांस का इस्तेमाल करता है जिस कारण से उसके शरीर के विशेष अंगों और नाड़ियों में खास तरह का कंपन पैदा होता है। इस कंपन से शरीर से उच्च स्तरीय विद्युत प्रवाह पैदा होता है। शरीर में कंपन से धमनियों में खून का प्रवाह बढ़ने लगता जिस कारण से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है। महामृत्युंजय मंत्र के जाप से शरीर में मौजूद सप्तचक्रों में ऊर्जा का संचार होता है। महामृत्युंजय मंत्र न सिर्फ पढ़ने वालों का फायदा मिलता बल्कि यह मंत्र सुनने से भी शरीर में रक्त का संचार बढ़ जाता है। महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर का विशेष प्रभाव होता है। इस मंत्र के प्रत्येक अक्षर के उच्चारण में कई प्रकार की ध्वनियां निकलती हैं जिस कारण से शरीर के खास अंगो में खास तरह की कंपन पैदा होती है। इस कारण से शरीर में रोग कम उत्पन्न होते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र के उत्पत्ति की पौराणिक कथा
वेदों और पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र के प्रभाव और महत्व के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। जिसके अनुसार इस मंत्र के जाप से लंबी आयु, आरोग्य, यश और संतान प्राप्ति भी होती है। पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र के उत्पत्ति के बारे में कथा बताई गई है जिसके अनुसार ऋषि मृकण्डु के पुत्र मार्कण्डेय का जीवनकाल मात्र 16 वर्ष था। जब मार्कण्डेय को इस बात का पता चला तो वे शिवलिंग के समाने बैठकर भगवान शिव की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी 16 वर्ष की आयु पूरी होने पर जब यमराज मार्कण्डेय को लेने आए तो उन्होंने शिवलिंग को अपनी बाहों से लपेटकर दया याचना की। यम ने जबरन मार्कण्डेय को शिवलिंग से अलग करने का प्रयत्न किया जिसपर भगवान शिव क्रोधित हो उठे और यम को मृत्यु दण्ड दे दिया। भगवान शिव ने यम को इस शर्त पर जीवित किया कि ये बच्चा हमेशा जीवित रहे। यहीं से इस मंत्र की उत्पत्ति हुई।
कब-कब महामृत्युंजय पाठ का जप होता है उपयोगी
खुद की सेहत या परिवार के किसी सदस्य का स्वास्थ्य खराब होने पर महामृत्युंजय जाप उपयोगी।
कार्यों में लगातार मिल रही असफलता को दूर करने के लिए।
नया घर बनाने पर महामृत्युंजय पाठ का जप करवाना अति शुभ माना गया है।
कुंडली में कोई ग्रह दोष के निवारण करने के लिए।
महामृत्युंजय के जाप से शोक और मृत्यु तुल्य संकट टल जाते हैं।
कई तरह के भय को समाप्त करने के लिए
महामृत्युंजय जाप करते समय बरतें ये सावधानियां
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय इसके शब्दों का उच्चारण का महत्व बहुत होता है, इसलिए जाप करते समय उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखें।
जाप करते समय माला से ही जाप करें क्योंकि संख्याहीन जाप का फल प्राप्त नहीं होता है। प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप पूरा करके ही उठे।  
अगर आप दूसरे दिन जाप करने जा रहे है तो पहले दिन से कम जाप न करें। अधिक से अधिक कितना भी जाप किया जा सकता है। 
मंत्र का उच्चारण करते समय  स्वर होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। धीमे स्वर में आऱाम से मंत्र जाप करें। 
महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करें। 
जाप करते समय माला को गौमुखी में ढककर रखें।
जाप से पहले भगवान के समक्ष धूप दीप जलाएं। जाप के दौरान दीपक जलता रहे।
 इस मंत्र का जाप करते समय शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में से कोई एक को अपने पास अवश्य रखें। 
 मंत्र जाप हमेशा कुशा के आसन पर किया जाता है। इसलिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कुशा के आसन पर करें। 
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय एवं सभी सभी पूजा-पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा की ओर ही रखें। 
अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर जाप कर रहे हैं तो जल या दूध से अभिषेक करते रहें। 
जाप करने के लिए एक शांत स्थान का चुनाव करें, जिससे जाप के समय मन इधर-उधर न भटके। 
जाप के समय उबासी न लें और न ही आलस्य करें। अपना पूरा ध्यान भगवान के चरणों में लगाएं। 
जाप करने के दिनों में पूर्णतया ब्रह्मचार्य का पालन करें।
जितने दिन जाप करना हो उतने दिनों तक तामसिक चीजों जैसे मांस, मदिरा लहसुन, प्याज या अन्य किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ आदि से दूर रहें। 
जिस स्थान पर प्रथम दिन जप किया हो प्रतिदिन उसी स्थान पर बैठकर जप करें। 
जाप के दौरान बीच में किसी से बात न करें। सांसारिक बातों से दूर रहें।  

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