रायपुर मांगे हिसाब… आखिर कहां है हमारी स्मार्ट सिटी:70 करोड़ खर्च किए जाने के बाद भी बाजार बेहाल, ट्रैफिक से सब तरफ लोग परेशान

स्मार्ट सिटी के नाम पर रायपुरवासियों को जो सुविधाएं मिलनी थीं, वो भी नहीं मिल पाईं। ऊपर से बाजारों को ​व्यवस्थित करने के लिए भी 70 करोड़ के प्रोजेक्ट भी अधर में रहे और परेशानी भी कायम रही। भास्कर पड़ताल में पता चला है कि स्मार्ट सिटी का लगभग आधा हिस्सा ऐसे कामों पर खर्च किया गया, जो नगर निगम या दूसरे विभागों के जिम्मे थे। इसलिए स्मार्ट सिटी नई सुविधाएं विकसित करने में कामयाब नहीं हो सकी। शहर में पार्किंग बड़ी समस्या बन रही है। सार्वजनिक और सरकारी जगहों पर वाहनों की बेतरतीब भीड़ है। 38 करोड़ रुपए से अधिक पार्किंग पर खर्च हुए। लेकिन 27 करोड़ रुपए की कलेक्टोरेट की मल्टीलेवल पार्किंग में आगजनी जैसे हादसों का इंतजाम नहीं है। जयस्तंभ मल्टीलेवल पार्किंग की बिल्डिंग में माइनस 2 पार्किंग शुरू ही नहीं हो सकी, क्योंकि यहां भी हमेशा पानी भरा रहता है। पानी कहां से आ रहा है, अभी तक इसका निदान नहीं खोजा जा सका। फ्लोर पर जगह-जगह गड्ढे बने हैं। फायर सिस्टम काम कर रहा है या नहीं, इसका डेमो तक नहीं हुआ। टर्निंग रेडियस जैसे मानकों का ख्याल भी नहीं रखा गया। विवादों में काम, गंजमंडी नवीन मार्केट जैसे प्रोजेक्ट नहीं आ पाए स्मार्ट सिटी ने शुरुआती दौर में शहर के पुराने स्थापित बाजारों को व्यवस्थिति करने के लिए करीब 70 करोड़ के मार्केट प्रोजेक्ट चुने थे। 22.5 करोड़ रुपए का जवाहर मार्केट बनाने के बाद इस दिशा में आगे नहीं बढ़ पाया। गंजमंडी नवीन मार्केट जैसे प्रोजेक्ट से विवाद भी जुड़े रहे। 11 करोड़ रुपए का शास्त्री मार्केट 2022 से पहले ही बन जाना था। लेकिन ये भी अभी निर्माणाधीन है। सुभाष स्टेडियम कॉम्प्लेक्स में भी दुकानें बनाई गई। इसमें भी दुकानदार नहीं आए। लेटलतीफी और ओवर बजट का शिकार बने ज्यादातर प्रोजेक्ट
चार साल पहले जवाहर बाजार की लागत 16 करोड़ से 22.5 करोड़ रुपए कर दी गई। यहां जमीनी हालात ऐसी है कि बेसमेंट की माइनस 1 माइनस 2 पार्किंग में पानी भरा रहता है। टपकती छत फ्लोर का काम भी नहीं हुआ। तीन लिफ्ट हैं, पर वो भी बंद हैं। वहीं ऑफिस स्पेस के लिए बनाए गए हॉल भी अब तक भर नहीं पाए। राजनीतिक दबाव और ब्यूरोक्रेसी के विवाद से बचाव के लिए बनाई थी समिति, लेकिन यहां अफसरों ने नहीं लिए सही फैसले स्मार्ट सिटी का काम सुचारू रूप से हो सके और राजनीतिक दबाव और ब्यूरोक्रेसी के बीच विवाद की स्थिति नहीं बने, इसके लिए सलाहकार समिति बनाई गई। 10 साल में सलाहकार समितियों की बैठकें न के बराबर हुईं। यही नहीं, यहां पहले जनप्रतिनिधियों को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में नहीं रखा गया। इससे शहर में किस तरह के कैसे काम होने चाहिए, ये फैसला लेने में अफसर पूरी तरह नाकाम रहे। 10 साल में स्मार्ट सिटी को 6 एमडी व सीईओ मिले। हर बार एमडी के बदल जाने के बाद प्लान में भी बदलाव कर लिया गया। जब रजत बसंल एमडी रहे, उन्होंने मार्केट और ट्रैफिक पर फोकस किया। फिर शिव अनंत तायल ने बतौर एमडी व सीईओ रायपुर स्मार्ट सिटी को हेरिटेज और कल्चरल एक्टिविटी जैसे कामों पर ज्यादा ध्यान दिया। इससे पहले के काम पिछड़ते चले गए। इसके बाद सौरभ कुमार ने शिक्षा, तालाबों की सफाई जैसे प्रोजेक्ट चुने।​​​​​​​

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