केंद्र का अध्यादेश ‘असंवैधानिक’, इससे दिल्ली सरकार से शक्तियां छीनने की कोशिश : आतिशी

दिल्‍ली की शिक्षा मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने स्पष्ट कर दिया कि संविधान दिल्ली की सरकार को लैंड कानून व्यवस्था और पुलिस के अलावा सारी ताकत देता है, यह संवैधानिक पीठ का निर्णय था.

नई दिल्‍ली: 

दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्‍यादेश को असंवैधानिक करार दिया है. उन्‍होंने बताया कि दिल्‍ली सरकार इस अध्‍यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. बता दें कि केन्द्र सरकार ने ‘दानिक्स’ कैडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से शुक्रवार को एक अध्यादेश जारी किया. अध्यादेश जारी किये जाने से महज एक सप्ताह पहले ही सुप्रीम कोट ने राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंपा है.

आतिशी ने कहा, “केंद्र सरकार का अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली को दिए गए संवैधानिक अधिकार को छीनने का प्रयास है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. जब पहली बार आम आदमी पार्टी(AAP) की सरकार बनी थी, उसके बाद मई 2015 में केंद्र सरकार ने ऐसा ही एक प्रयास किया था और अधिकारियों के ट्रांसफ़र और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली से छीन लिया गया. आठ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो ग़ैर संवैधानिक था.”

आतिशी ने बताया कि तीन सिद्धांतों की बात सुप्रीम कोर्ट ने कही थी- फ़ेडरल स्ट्रक्चर, लोकतंत्र का अधिकार, अफ़सरों की चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेही. कोर्ट के इस आदेश का मतलब हुआ कि अगर जनता ने अरविंद केजरीवाल को बतौर मुख्‍यमंत्री चुना है, तो निर्णय लेने का अधिकार केजरीवाल सरकार को है, तीन विषयों को छोड़कर. लेकिन केंद्र की सरकार और पीएम मोदी से यह सहन नहीं हुआ कि अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने ताक़त दे दी.

उन्‍होंने बताया कि यह अध्यादेश कहता है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सर्विसेज़ पर कोई क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है. ट्रांसफ़र पोस्टिंग के लिए नई अथॉरिटी बनाई जाएगी, जिसमें तीन मेंबर होंगे. चेयरमैन होंगे मुख्‍यमंत्री, इसके अलावा चीफ़ सेक्रेटरी और होम सेक्रेटरी इसके मेंबर होंगे, लेकिन इन दोनों अधिकारियों को केंद्र सरकार नियुक्त करेगी यानि सीएम चेयरमैन तो होंगे, लेकिन वे माइनोरॉटी में होंगे. इसमें निर्णय मेजोरिटी से होगा यानि केंद्र के अधिकारियों के ज़रिए निर्णय होगा. वहीं, अगर गलती से इस अथॉरिटी ने कोई ऐसा निर्णय लिया, जो केंद्र को पसंद नहीं है, तो एलजी को उसे पलटने का अधिकार होगा.

संविधान के अनुसार ऐसा अध्यादेश लाने की ताक़त केंद्र के पास नहीं है और ऐसा सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में कहा गया है. कोर्ट को ऐसा शक था, इसलिए कोर्ट ने आदेश के ज़रिए ऐसे रास्ते को बंद कर दिया है. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के संविधान ने एक लोकतांत्रिक ताक़त दी है. छह हफ़्ते, बारह हफ़्ते के लिए इस अध्यादेश के ज़रिए अरविंद केजरीवाल के ताक़त को रोक सकते हैं, लेकिन जनता को नहीं रोक सकते हैं.

दिल्‍ली की शिक्षा मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने स्पष्ट कर दिया कि संविधान दिल्ली की सरकार को लैंड कानून व्यवस्था और पुलिस के अलावा सारी ताकत देता है, यह संवैधानिक पीठ का निर्णय था. अगर दिल्ली सरकार की ताकत लेनी ही है, तो फिर संविधान बदलिए. दिल्ली की विधानसभा को भंग करिए. दिल्ली में चुनाव बंद करवाइए, लेकिन जब तक दिल्ली में चुनाव होगा, जब तक संविधान में 239AA है, तब तक लैंड कानून व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर बाकी सारी ताकत चुनी हुई सरकार के पास हैं. यह अध्यादेश संवैधानिक पीठ के आदेश की अवमानना ही नहीं, बल्कि असंवैधानिक है. हम सुप्रीम कोर्ट में इसको चुनौती देंगे और यह बात केंद्र सरकार भी जानती है.

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